सोमवार, 20 अगस्त, 2012 को 08:49 IST तक के समाचार
विज्ञान की एक पत्रिका में छपे एक अध्ययन में दावा किया गया है कि रोजाना दो मुट्ठी अखरोट खाने से पुरुषों में शुक्राणुओं की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होती है.
अध्ययन के दौरान जिन पुरुषों को 12 हफ्ते तक लगातार अखरोट खाने को दिया गया, उनके शुक्राणुओं का आकार, गति और उसकी आयु में वृद्धि देखी गई.
ऐसा माना जा रहा है कि अखरोट में पाया जाने वाला वसीय अम्ल शुक्राणुओं के विकास में सहायक होता है. हालांकि ये नहीं पता चला है कि क्या इससे पुरुषों की प्रजनन दर में भी बढ़ोत्तरी होती है या नहीं.
प्रत्येक छह में से एक दंपति को गर्भधारण करने में समस्या आती है और ऐसा माना जा रहा है कि इसमें 40 प्रतिशत मामले पुरुषों के शुक्राणु के कारण आते हैं.
शेफील्ड विश्वविद्यालय के एंड्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉक्टर एलेन पेसी कहते हैं, “फिलहाल इस तरह की बातों को मजाक में टाला जा सकता है, लेकिन इस बात के प्रमाण लगातार बढ़ रहे हैं कि समुचित पोषण के जरिए पुरुषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होती है.”
"फिलहाल इस तरह की बातों को मजाक में टाला जा सकता है, लेकिन इस बात के प्रमाण लगातार बढ़ रहे हैं कि समुचित पोषण के जरिए पुरुषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होती है"
डॉक्टर एलेन पेसी
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बारे में अगला कदम उन दंपतियों पर काम करना होगा जो इस बारे में क्लीनिकों का चक्कर लगाते हैं.
पहले ये माना जाता था कि पुरुषों में नपुंसकता की वजह शुक्राणुओं की कमी या फिर उनकी कमजोर गति या आकार-प्रकार है.
अखरोट
इस अध्ययन के तहत 21 से 35 साल के बीच 117 लोगों पर प्रयोग किया गया जिन्हें दो वर्गों में बाँटा गया.
एक समूह को हर दिन 75 ग्राम अखरोट दिया गया. जबकि दूसरे वर्ग को सामान्य पोषण दिया गया.
शोध परियोजना के प्रमुख प्रोफेसर वेंडी रॉबिन्स का कहना है कि अध्ययन में शामिल सभी 117 लोग धूम्रपान नहीं करने वाले स्वस्थ युवा थे.
उन्होंने बताया, “पहले हमें पता नहीं था कि अखरोट का प्रजनन क्षमता पर अच्छा असर होगा या नहीं लेकिन अध्ययन के बाद परिणाम सकारात्मक आए हैं.”
उन्होंने बताया कि जिन पुरुषों ने अखरोट का सेवन नहीं किया उनमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ.
इसके अलावा शोधकर्ताओं ने पुरुषों के शुक्राणुओं के तैरने की क्षमता और आनुवंशिक गुणों के बारे में भी अध्ययन किया.
उन्होंने पाया कि अखरोट नहीं खाने वालों के मुकाबले खाने वालों के शुक्राणुओं की तैरने की गति में औसतन तीन प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.
लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि इसे बतौर इलाज अपनाए जाने से पहले अभी और परीक्षणों की जरूरत है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
badhiya
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