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रविवार, 12 जून 2011

प्रवचन(भाग-२)


  SATSANG BY DR.JOGA SINGH KAIT "JOGI" 
   दिनांक ०५ दिसम्बर २०१० को श्री सुख राम जी द्वारा 
पल्लू में आयोजित सत्संग में डॉ,जोगासिंह द्वारा दिया गया 
=======प्रवचन======= 
आदमी की दो मूलभूत ज़रूरतों में से दो भोजन व भजन की बात हो रही थी यहाँ विचार करने लायक बात ये है 
के हम मानव होते हुए कौनसा भोजन करतें हैं मानव के खाने योग्य या जानवरों के खाने योग्य ?दूसरी बात ,भोजन करने का तरीका क्या है ?हमारे पास भोजन करने का समय ही नहीं है ,२-३ मिनट में चर जातें हैं ,टी.वी. देखते हुए भोजन करतें हैं ,भोजन तो सारा टी.वी. खा गया ,ध्यान कहीं और है पता ही नहीं चलता के हमनें क्या खाया ,कब खाया ,कोई आन्नद  आया ?कितना विपरीत भोजन करतें है पता ही नहीं ,मूली के परांठे दही के साथ मज़े से खातें है .दोनों ही विपरीत ,दूध के साथ नमकीन खा जातें है दोनों ही विपरीत ,शादी में कितने प्रकार की खटाई खातें है वे भी विपरीत ,खड़े-खड़े पशुयों की तरह खातें हैं ,इतना ही नहीं ना जाने और कितनी बातें हैं ,जो हम  जाने -अनजाने-जानबूझकर करते हैं ,फिर भी अपने आप को मानव के रूप में श्रेष्ट कृति सिद्ध करने में कोई क़सर बाकी नहीं छोड़ते .जब हम सारा व्यवहार जानवरों जैसा सम्मपन  करतें हैं तो ज़रूरी हो जाता हैं के हम अपने आप पर फिर से विचार करें .के हम आखिर हैं किस श्रेणी में ?यदि व्यवहार के अनुसार देखें तो अपने आपको मानव समझना हमारी सबसे बड़ी भूल है जो सुधारी जानी चाहिए .
एक और बात है हमारी दिनचर्या -हम भजन भी करतें हैं तो कोरम पूरा करने के लिए दिखने के लिए क्योंकि समय ही नहीं है किसी भी काम को पूरी रूचि व आन्नद से करने का .हम अपने आप को धार्मिक बतातें हैं लेकिन काम करतें हैं अपनी गरज के अनुसार लाभ-हानि सोचके तो धर्म कहाँ रहा हमारा ?कौनसा रहा ?ये सब कुछ मन उत्पन ही चलाना है तो बनावटी ओडनी क्यूँ ?क्यों भर मरते हैं?जब उसके मुताबिक चलाना ही भरी पड़ता है तो?
अब एक और बात पर विचार करतें हैं आखिर हम करते क्या हैं ?पहला काम ,दूसरों के अवगुण खोजना ,दूसरा काम अपने अवगुण छिपाना ,तीसरा काम -आगे निकालने के लिए कोशिश ना करके दूसरों को अडंगी देकर रोकना,चौथा काम-दुखी रहना ,यहाँ स्पस्ट ही है के हम अपने दुःख से दुखी नहीं होते ,दूसरों के सुख को देखकर अधिक दुखी होतें  हैं.इतना सब कुछ व और बहुत कुछ इसी तरह से हो रहा है ,जब के हम नियमित रूप से सतसंगों में भाग ले रहें हैं .कितने संत -महात्मा समझते हुए चले गए ,कितने समझा रहें हैं ,हमारे पर असर नज़र आया कभी? नहीं न ? कभी सोचा एसा क्यों हुआ ?(मौन)
मेरे विचार से इसका उतर दूर या मुस्किल नहीं है ,थोडा सा अपने बारे में यहीं बैठे-बैठे सोचें उतर मिल जायेगा 
(सन्नाटा-व मौन) किसी को उतर मिला ?(एक भगत बोला आप ही बतायो) ये सवाल क्यों आया ?क्यों की हमने कोशिश ही नहीं की ,सुना और सुबह उठकर अपने -अपने गाँव चले जाना है .वहां सभी की वाहवाही होगी के जोगा सिंह तो बड़ा भगत है भई सतसंग में जाता है .ये कोई नहीं पूछेगा वहां से तूं लाया क्या ?लाये भी कहाँ से वो तो शरीरिक रूप से सतसंग में था ,मानसिक रूप से तो कही और ही था.तो संतों का किया कराया हमने बराबर कर दिया .तो यहाँ आने का लाभ ही क्या ?
गाँव जाकर क्या बतायो गे की वहां से हम क्या लाये ?कई लोग तो ये ही कहेंगे की सुख राम जी खाना बहुत अच्छा बनाया था ,हलवा तो ज़ोरदार देशी घी  का था (पंडाल  में हंसी की लहर दौड़ गयी )सुनने वाला पूछेगा -अगला सत्संग कब होगा ? मेरे को भी साथ लेकर चलना ,भूल मत जाना (फिर ज़ोरदार हंसी से पंडाल गूंज उठा)
पंडाल में गूंजी ये ज़ोरदार हंसी मेरे कथन की सचाई पर मोहर का काम कर रही है .(अजीब शांति)
(तीसरा भाग लगातार ..............) 

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