सतसंग (पल्लू -भाग तीन)
डॉ.जोगा सिंह कैत"जोगी"
(मौन के बाद)
यदि हम आपने सारे ज्ञान को अलग रखकर
दुनियां को देखें तो पायेगें
की पूरी श्रृष्टि भोजन पर ही टिकी है .जीव ही ,
जीव का भोजन है. श्रृष्टि
में दो प्रकार के ही जीव पाए जातें हैं-एक हैं स्थिर,
दूसरे अस्थिर.यानी
एक जड़,दूसरे गतिशील ,गतिशील के दो भाग हैं
-एक जानवर ,दूसरे
हम.
असल मे देखा जाये तो हम सभी जानवर ही हैं.
जिसमें जान हो वो
जानवर हुआ.सभी जानवरों को अपनी जान
बनाये रखने के लिए
भोजन तो चाहिए ही.भोजन नहीं तो जान नहीं,
जान नहीं तो भजन
कौन करेगा ?
श्रृष्टि में सभी जीव एक दूसरे का भोजन हैं ,
उसका रूप-स्वरुप कोई भी
हो सकता है.भले ही मासाहारी हो या शाकाहारी.
स्पस्ट है की एक जीव की मौत असंख्य जीवों
का भोजन होता है.
एक जीव के मरने के बाद उसे कितने जीव
खातें हैं ?छोटी मछली
को बड़ी मछली खा जाती है,आदमी जीवों को
मार कर खा जाता है,
पौधों को मारकर खा जाता है,सूक्षम जीव से
लेकर बड़े जीव तक यही
प्रक्रिया चलती है.इसी प्रक्रिया को ही श्रृष्टि का
चक्कर कहतें हैं.हम इसी
भंवर को भोगते हैं.
अब विचारशील होने के नाते हमें ये सोचना
चाहिए की हमारा उचित
भोजन है कौन सा ? हम अपना भोजन कर
रहें हैं या दूसरों का भोजन
खा रहें हैं ? जब तक विचारशील नहीं हुए थे
तब तक हम भी जानवरों
के साथ रहते थे,उन्ही की तरह भोजन करते थे.
तब तक तो ठीक मान
सकतें हैं ,लेकिन क्या आज भी वो सब उचित है ?
ये यक्ष प्रशन आपके सामने आता है .................
कि क्या आज भी हमें जानवरों का भोजन(मांस)
करना चाहिए या
अपना भोजन(वनस्पति) करना चाहिए ?
करना चाहिए ? (चौथा भाग बाद में ....)
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Dr. Joaga singh Ji , SATSANG SE ACHHY ACHHY JANKARI MILY. SIR , DARVIN NE EK SIDANT PRITPADIT KIYA THE , SURVIVAL OF THE FEATEST . SHAYAD IS BHAG MEIN BHI YEHI SIDANT LAGOO HO RAHA HAE.
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